चतुर्दशी तिथि की शुरुआत 21 मई को सांय 5 बजकर 40 मिनट पर हो रही है और 22 मई तक सुबह 6 बजकर 48 मिनट तक रहेगी। इन दोनों दिनों में, सूर्यास्त के समय चतुर्दशी की विस्तृति या उसकी अवस्थिति होगी। भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार शाम के समय लिया था क्योंकि हिरण्यकश्यप को वरदान मिला था कि वह न दिन में मर सकता था न ही रात्रि में। इसलिए, इस वर्ष 21 मई को नरसिंह जयंती का आयोजन किया जाएगा, क्योंकि पहले दिन ही चतुर्दशी तिथि संध्या के समय व्याप्त रहेगी।
नरसिंह जयंती (Narasimha Jayanti) पर, लोग भगवान नरसिंह की उपासना और पूजा करते हैं। यह पर्व भगवान विष्णु के एक विशेष अवतार को समर्पित है। नृसिंह जयंती के दिन, श्रद्धालु नृसिंह भगवान की मूर्ति को विशेष रूप से पूजते हैं, जिसका अर्थ है उनके शक्तिशाली रूप को मानना और स्तुति करना।
इसके साथ ही, भक्त नृसिंह जयंती के अवसर पर नृसिंह भगवान की कथा का पाठ भी करते हैं। यह कथा भगवान के क्रोध और उनके अद्भुत लीलाओं को व्यक्त करती है, जिससे भक्तों को धार्मिक और आध्यात्मिक उत्साह मिलता है। नृसिंह जयंती के इस महान पर्व के माध्यम से, लोग भगवान की भक्ति और ध्यान में लीन होते हैं और अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन की प्रेरणा प्राप्त करते हैं।
नरसिंह जयंती (Narasimha Jayanti) हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जिसमें भगवान नृसिंह की पूजा की जाती है। भगवान नरसिंह भगवान विष्णु के चौथे अवतार हैं, जिनका अवतार असुर हिरण्याकशिपु के अत्याचार से अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए हुआ था। यह त्योहार वैशाख शुक्ल चतुर्दशी को मनाया जाता है और इसमें भक्त भगवान नरसिंह की पूजा-अर्चना और व्रत कथा का पाठ करते हैं।
कथा के अनुसार, हिरण्याकशिपु एक असुर राजा था, जिसने भगवान विष्णु को अपना शत्रु मान लिया था। उसने कठोर तपस्या करके ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त किया था कि उसे न तो कोई मनुष्य मार सकता है, न ही कोई जानवर, न दिन में, न रात में, न घर के भीतर, न बाहर, न आकाश में, न पृथ्वी पर और न ही किसी अस्त्र-शस्त्र से। इस वरदान के कारण वह अत्यंत अहंकारी हो गया और उसने पूरे संसार में अत्याचार करना शुरू कर दिया।
हिरण्याकशिपु का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का महान भक्त था। उसकी भक्ति और श्रद्धा को देखकर हिरण्याकशिपु अत्यंत क्रोधित हो गया और उसने प्रह्लाद को विष्णु की भक्ति छोड़ने के लिए अनेक प्रकार की यातनाएं दीं। परंतु प्रह्लाद ने हर बार विष्णु की भक्ति और श्रद्धा को बनाए रखा और हर बार भगवान विष्णु ने उसकी रक्षा की।
एक दिन हिरण्याकशिपु ने प्रह्लाद से पूछा कि उसका भगवान कहाँ है। प्रह्लाद ने उत्तर दिया कि भगवान हर जगह हैं। क्रोधित होकर हिरण्याकशिपु ने अपने महल के स्तंभ को तोड़ा और कहा, “क्या तुम्हारा भगवान इसमें है?” तभी भगवान विष्णु नरसिंह रूप में स्तंभ से प्रकट हुए। नृसिंह का रूप अद्भुत था – आधा मनुष्य और आधा सिंह। उन्होंने हिरण्याकशिपु को संध्या समय महल की दहलीज पर अपनी जांघों पर रखकर अपने नुकीले नाखूनों से मार डाला, इस प्रकार ब्रह्मा जी के वरदान की सभी शर्तों को पूरा किया।
नरसिंह जयंती (Narasimha Jayanti) पर भक्त भगवान नरसिंह की पूजा करते हैं और उनकी कथा का पाठ करते हैं। इस दिन व्रत रखने का भी विशेष महत्व है। भक्त भगवान नरसिंह की कृपा पाने के लिए इस दिन उपवास करते हैं और प्रार्थना करते हैं। यह दिन भक्तों को भगवान के उग्र और सौम्य दोनों स्वरूपों को समझने का अवसर देता है।
नरसिंह जयंती (Narasimha Jayanti) भगवान नरसिंह की भक्ति और प्रह्लाद की अटूट श्रद्धा को समर्पित पर्व है। यह दिन हमें यह संदेश देता है कि भगवान हमेशा अपने भक्तों की रक्षा करते हैं और अधर्म पर धर्म की जीत सुनिश्चित करते हैं। इस पर्व को मनाकर भक्त भगवान नृसिंह की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं और अपने जीवन को आध्यात्मिक ऊर्जा से भरते हैं।
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